Kuchh khatta kuchh mitha in Hindi Fiction Stories by Rajeev Upadhyay books and stories PDF | कुछ खट्टा कुछ मीठा - परिचय

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कुछ खट्टा कुछ मीठा - परिचय

विशाल पिछले चार साल से वैभवी से रिश्ते में है परन्तु अब तक ना तो उसने ही और ना ही वैभवी ने अपने घरवालों को इस रिश्ते के बारे में कुछ भी बताया है। लेकिन अब उन्हें अपने-अपने घर वालों को बताना ही होगा। परन्तु कैसे?

कल शाम को तीन बजे विशाल वैभवी के पापा से मिलने लिए वैभवी के घर जाने वाला है। वहाँ वह अपने व वैभवी के रिश्ते के बारे बातें करेगा। वह किन शब्दों में वैभवी के पापा से बात करेगा? वैभवी क्या उस समय उतनी ही मजबूती से खड़ा रहेगी? क्या वैभवी के पापा इस रिश्ते के लिए मान जाएंगे?

विशाल के पिता बहुत ही परम्परावादी और कड़े व्यक्तित्व के व्यक्ति हैं। वो हर हाल में परम्पराओं को पकड़े रहते हैं। क्या होगा जब विशाल के पिता वैभवी व उसके रिश्ते के बारे में जानेंगें? क्या वो मानेंगे? विशाल की माँ क्या सोचती है इस रिश्ते के बारे में? कहीं उसकी माँ तो इस रिश्ते को लेकर प्रश्न खड़ा तो नहीं करेगी? कहीं रोहिणी तो प्रश्न नहीं उठा देगी इस रिश्ते को लेकर?

लेकिन कहते हैं ना कि एक छोटा सा विवाद भी मन में कहीं ना कहीं गाँठ डाल ही देता है। और मन नया हो व जीवन का बहुत उतार चढ़ाव को ना देखा हो तो ये गाँठ कुछ अधिक मजबूती से बँध जाती है। इस घटना ने विशाल के मन को पक्का कर दिया था कि उसके पिता सिर्फ परम्परावादी ही नहीं बल्कि दकियानूसी विचारों के थे। उसका मन उससे सदैव ही प्रश्न किया करता था कि ‘ऐसा कौन पिता करता है? अपनी ही बेटी के रास्ते का रोड़ा बन जाना! पता नहीं लोग ऐसा कैसे कर लेते हैं?’................

‘बोलो!’

विशाल ने सिर हिलाकर इशारों में कहा, ‘कोई नहीं। आप बात कर लीजिए।‘

माँ ने सामने वाले व्यक्ति से जल्दी में ये कहते हुए फोन रखकर दिया, ‘विशाल मुझसे कुछ कहना चाहता है। अभी तक उसने खाना भी नहीं खाया है। मैं फोन रख रही हूँ।‘

‘कौन था माँ?‘.........................

घर के बाहर एक बड़ा सा बरामदा था व उसके आगे एक ओर गाड़ी रखने के लिए गैराज और दूसरी ओर एक छोटा सा गार्डेन था जिसमें उसके पिता रोज सुबह बैठकर अखबार पढ़ते थे और हर रविवार पूरे दिन उस गार्डेन में काम करते। दादाजी के आने बाद तो खैर बरामदा और गार्डेन ही दिन भर के लिए उनका ठिकाना हो जाता था। कहीं देर रात को सोने के लिए वे घर के अन्दर आते थे। गर्मी व बरसात के दिनों में तो बरामदे में ही रखे तख्त पर सो जाया करते थे।.........................

इतना सुनते ही विशाल एकदम सुन्न हो गया। वही हो गया जो वह बिल्कुल ही नहीं चाहता था। वह कहीं से भी नहीं चाहता था कि वैभवी व उसके रिश्ते के बारे में उसके पिता और परिवार के बाकी लोगों को किसी और से पता चले। वह एक-एक बात सामने से खड़ा होकर परिवार के सभी लोगों को बताना चाहता था। उसकी इच्छा थी कि इस बारे में वह अपने दादाजी से भी बात करेगा।.................

इन प्रश्नों का उत्तर जाने के लिए कृपया आप इस कहानी की आने वाली विभिन्न कड़ियों को पढ़ें।